मुंबई के परेल में फोटो जर्नलिस्ट के साथ गैंग रेप हुआ, महिलाओं के लिए सुरक्षित माने जाने वाले मुंबई शहर के बीचोंबीच वाले इलाके परेल में हुई यह घटना बदलते समाज का वीभत्स और कुत्सित रूप दर्शाती है। जनाक्रोश के बीच पुलिस ने कइयों को डिटेन किया, संभवत: सभी आरोपी पकड़े जाएंगे, कानूनी फिर अदालती कार्रवाई और फिर संभवत: सजा! यह घटना दिल्ली में 12 दिसंबर की घटना जैसी ही थी, फर्क सिर्फ बस का था। दूसरा और अहम फर्क यह कि मुंबई में ऐसा हुआ, जहां देर रात तक वर्किंग विमिंस घरों को लौटती हैं। यह सच है कि परेल के शक्ति मिल्स कंपाउंड का इलाका सूनसान है, लेकिन यहां तो रात एक बजे तक दूर-दराज रहने वाली महिलाएं बेफिक्र हो अकेले अपने घर सकुशल पहुंच जाती हैं।
महिलाओं के लिए दूसरे महानगरों से सुरक्षित मानी जाने वाली मुंबई में कानून-व्यवस्था से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी यहां के नागरिकों की है। यह वही शहर है, जहां युगल उन्मुक्त हो कहीं भी आते-जाते हैं, इस शहर में ऐसी घटना शर्मिंदगी को भी शर्मसार कर देती है। यहां कोई सोच भी नहीं सकता कि शाम के वक्त ऐसा कुकृत्य हो सकता है। पहले लोग दिल्ली को कोसा करते थे कि वह रेप सिटी बनती जा रही है, लेकिन अब घटिया और घृणित मानसिकता इस कदर समाज को कोढ़ी बनाती जा रही है कि कोई भी जगह सुरक्षित नहीं कही जा सकती!
इस बीच यह भी एक कड़वा सच है कि मुंबई पुलिस रेप की घटना के 24 घंटे बाद भी किसी पुख्ता नतीजे पर नहीं पहुंच पाई, सबकुछ नॉर्मल समझकर किया जा रहा है। दिखावे के लिए आनन-फानन में दर्जनों लोगों को डिटेन किया, कइयों से पूछताछ की गई, एक गिरफ्तारी हुई और बाकी की तलाश जारी है। पुलिस प्रशासन भी समझता है कि कुछ दिन लोग हो-हल्ला मचाएंगे, फिर धीरे-धीरे सभी अपनी जिंदगी की भागमभाग में व्यस्त हो जाएंगे। इस शहर की आदत भी है कि बीती ताहि बिसार देहि, आगे की सुधि लेहि! जी हां, यहां लोग जिंदगी की रफ्तार से दो-चार होते हुए रास्ते में लगने वाले झटकों पर कुछ क्षण बिफरते हैं, फिर आगे बढ़ जाते हैं।
कुल मिलाकर असली परीक्षा आम आदमी (खासकर आम औरत) की है, जिसे अपनी और अपनों की सुरक्षा खुद ही करनी है। अब वह दौर बीत गया, जब हम नारी सम्मान की बातें करते थे। अब वह दौर है, जहां विज्ञापन भी नारी देखकर ही चलते हैं। कॉर्पोरेट सेक्टर में महिलाएं-लड़कियां रखी जाती हैं, ताकि ऑफिस का वर्क कल्चर खुशगवार बना रहे। स्कूल-कॉलेजों तक में फैशन परेड कराई जाती है। और तो और नेटवर्किंग साइट्स पर भी महिलाएं ही ज्यादा लाइक होती हैं। अब वैषयिक चर्चाएं कम और कामुक चर्चाएं ज्यादा होती हैं। हम बात तो सामाजिक पारदर्शिता की करते हैं, जिसमें नारी को समान सम्मान दिए जाने की दुहाई करते हैं, लेकिन सचाई यह है कि मानसिक रूप से पारदर्शिता नारी को उघाडऩे में ज्यादा रहती है। ऐसे में, बदलाव की जरूरत कानून-व्यवस्था, पुलिस-पड़ताल में नहीं, बल्कि मानसिक-सामाजिक क्षेत्र में ज्यादा है, क्योंकि दिल्ली की घटना या मुंबई की घटना घृणित मानसिकता और कुत्सित समाज की ही देन है।
सर्वेश पाठक
महिलाओं के लिए दूसरे महानगरों से सुरक्षित मानी जाने वाली मुंबई में कानून-व्यवस्था से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी यहां के नागरिकों की है। यह वही शहर है, जहां युगल उन्मुक्त हो कहीं भी आते-जाते हैं, इस शहर में ऐसी घटना शर्मिंदगी को भी शर्मसार कर देती है। यहां कोई सोच भी नहीं सकता कि शाम के वक्त ऐसा कुकृत्य हो सकता है। पहले लोग दिल्ली को कोसा करते थे कि वह रेप सिटी बनती जा रही है, लेकिन अब घटिया और घृणित मानसिकता इस कदर समाज को कोढ़ी बनाती जा रही है कि कोई भी जगह सुरक्षित नहीं कही जा सकती!
इस बीच यह भी एक कड़वा सच है कि मुंबई पुलिस रेप की घटना के 24 घंटे बाद भी किसी पुख्ता नतीजे पर नहीं पहुंच पाई, सबकुछ नॉर्मल समझकर किया जा रहा है। दिखावे के लिए आनन-फानन में दर्जनों लोगों को डिटेन किया, कइयों से पूछताछ की गई, एक गिरफ्तारी हुई और बाकी की तलाश जारी है। पुलिस प्रशासन भी समझता है कि कुछ दिन लोग हो-हल्ला मचाएंगे, फिर धीरे-धीरे सभी अपनी जिंदगी की भागमभाग में व्यस्त हो जाएंगे। इस शहर की आदत भी है कि बीती ताहि बिसार देहि, आगे की सुधि लेहि! जी हां, यहां लोग जिंदगी की रफ्तार से दो-चार होते हुए रास्ते में लगने वाले झटकों पर कुछ क्षण बिफरते हैं, फिर आगे बढ़ जाते हैं।
कुल मिलाकर असली परीक्षा आम आदमी (खासकर आम औरत) की है, जिसे अपनी और अपनों की सुरक्षा खुद ही करनी है। अब वह दौर बीत गया, जब हम नारी सम्मान की बातें करते थे। अब वह दौर है, जहां विज्ञापन भी नारी देखकर ही चलते हैं। कॉर्पोरेट सेक्टर में महिलाएं-लड़कियां रखी जाती हैं, ताकि ऑफिस का वर्क कल्चर खुशगवार बना रहे। स्कूल-कॉलेजों तक में फैशन परेड कराई जाती है। और तो और नेटवर्किंग साइट्स पर भी महिलाएं ही ज्यादा लाइक होती हैं। अब वैषयिक चर्चाएं कम और कामुक चर्चाएं ज्यादा होती हैं। हम बात तो सामाजिक पारदर्शिता की करते हैं, जिसमें नारी को समान सम्मान दिए जाने की दुहाई करते हैं, लेकिन सचाई यह है कि मानसिक रूप से पारदर्शिता नारी को उघाडऩे में ज्यादा रहती है। ऐसे में, बदलाव की जरूरत कानून-व्यवस्था, पुलिस-पड़ताल में नहीं, बल्कि मानसिक-सामाजिक क्षेत्र में ज्यादा है, क्योंकि दिल्ली की घटना या मुंबई की घटना घृणित मानसिकता और कुत्सित समाज की ही देन है।
सर्वेश पाठक